कोरोना वायरस आज महज एक बीमारी या शब्द नहीं बल्कि पूरे भारत के लिए सबसे बड़ा सर सर्द बन चुका है। वो सर दर्द जिसे चाहते हुए भी ठीक नहीं किया जा सकता। कोरोना ने पूरे देश को लॉकडाउन कर दिया है। लोग घरों में कैद हैं, सड़कें सुनसान पड़ी है। यहां तक की बड़े बुजुर्ग भी यही बता रहें हैं कि उन्होंने अपने जीवन में कभी ऐसा समय नहीं देखा। कोरोना के भारत आने के साथ ही क्वारंटाइन शब्द भी चर्चा में आ गया है। कुछ लोगों को ये शब्द नया लग रहा होगा लेकिन ये क्वारंटाइन का कांसेप्ट काफी सालो पहला आ गया था।
कुछ साल पहले कोरोना जैसी ही एक भयानक बीमारी ने कई बड़े शहरों में दस्तक दी थी। उस समय महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को भी क्वारंटाइन होना पड़ा था। ये बात साल 1896 की है। तब महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका का दौरा कर के भारत लौट थे। भारत लौटने के बाद उन्होंने दिसंबर के महीने में अपनी परिवार को दक्षिण अफ्रीका ले जाने का निर्णय लिया। जिस समय गांधी परिवार अफ्रीका पहुंचा उस समय राजकोट समेत दुनिया के कई हिस्सों में प्लेग फैल चुका था।
उस दौर में बीमारियों का फैलना आम बात होती थी। साथ ही उस दौर की व्यवस्थाएं भी काफी अलग थी। दूसरे देश से आने वाले जहाज़ों को पीला झंडा दिखाना अनिवार्य होता था। इसके बाद उस जहाज़ के सभी यात्रियों की मेडिकल जांच होती थीं। 13 जनवरी 1897 को गांधी परिवार का जहाज़ दक्षिण अफ्रीका पहुंचा।
एक डॉक्यूमेंट में छपी रिपोर्ट के मुताबिक गांधी (Mahatma Gandhi) जब जहाज से उतरे तो ‘गोरों’ ने उनके साथ बुरा व्यवहार किया। बात हाथापाई तक उतर आई थी। पुलिस को बीच में आकर गांधी परिवार को बचाना पड़ा। बाद में महात्मा गांधी और उनके परिवार को क्वारंटाइन कर दिया गया। उस समय महात्मा गांधी कुछ भारतीय परंपराओं के कारण क़्वारंटाइन की जगह सूतक शब्द का इस्तेमाल किया करते थे।