आयुर्वेद प्राकृतिक एवं समग्र स्वास्थ्य की पुरातन भारतीय पद्धति है| संस्कृत मूल का यह शब्द दो धातुओं के संयोग से बना है – आयुः + वेद ( “आयु ” अर्थात लम्बी उम्र (जीवन ) और “वेद” अर्थात विज्ञान)| अतः आयुर्वेद का शाब्दिक अर्थ जीवन का विज्ञान है|
एलोपैथी के बारे में कहा जाता है कि एलोपैथी समस्या का तुरंत समाधान तो कर देती है परंतु उसके केंद्र में जाकर बीमारी के उद्गम पर कोई प्रहार नहीं करती। वहीं दूसरी तरफ आयुर्वेद समस्या को समाप्त करने में थोड़ा समय लेता है लेकिन वह समस्या दोबारा उस शरीर में उत्पन्न में नहीं हो पाती है। विभिन्न विद्वानों ने इसका रचना काल ईसा के 3,000 से 50,000 वर्ष पूर्व तक का माना है। ऋग्वेद-संहिता में भी आयुर्वेद के अतिमहत्त्व के सिद्धान्त यत्र-तत्र विकीर्ण है। चरक, सुश्रुत, काश्यप आदि मान्य ग्रन्थ आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपवेद मानते हैं।आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली के अनुसार, चिकित्सक द्वारा, आपके समस्याओं के अनुकूलित विशेष रूप से डिज़ाइन की गई एक उपचार योजना बनाया जाता है। आपके विशेष शारीरिक और भावनात्मक क्षतिपूर्ति और ये तीनों तत्वों के बीच संतुलन को ध्यान रखते हुए आपको आयुर्वेदिक दवा दिया जाता हैं।
आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली के अनुसार, चिकित्सक द्वारा, आपके समस्याओं के अनुकूलित विशे
आयुर्वेद शब्द का अर्थ: आयुर्वेद एक संस्कृत शब्द है जिसको हिंदी में अनुवाद करें तो उसका अर्थ होता है “जीवन का विज्ञान” (संस्कृत मे मूल शब्द आयुर का अर्थ होता है “दीर्घ आयु” या आयु और वेद का अर्थ होता हैं “विज्ञान”। इसका मुख्य लक्ष्य अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देना है, न कि बीमारी से लड़ना। लेकिन आयुर्वेद चिकित्सा विशिष्ट स्वास्थ्य समस्याओं की ओर बढ़ाया जा सकता है।
यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका में, इसे पूरक और वैकल्पिक चिकित्सा (CAM) का एक रूप माना जाता है। आयुर्वेद महज जड़ी-बूटी नही है। आयुर्वेद एक प्राचीन पद्धति है। CAM थेरेपी के छात्रों का मानना है कि जीवन और मृत्यु एक दूसरे से सार्वलौकिक प्रकार से जुड़े हैं। यदि आपका मन, शरीर और आत्मा में ये सार्वलौकिक तालमेल बना रहता है, तो आपका स्वास्थ्य अच्छा रहता है। जब कोई चीज इस संतुलन को रोकती है, तो आप बीमार पड़ जाते हैं। इस संतुलन को परेशान करने वाली चीजों में आनुवंशिक या जन्म दोष, चोट, जलवायु, मौसमी परिवर्तन, उम्र और आपकी भावनाएं शामिल हो सकती हैं।
जो लोग आयुर्वेद का अभ्यास करते हैं उनका मानना है कि प्रत्येक व्यक्ति ब्रह्मांड में पाए जाने वाले पाँच मूल तत्वों से बना है: आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी। ये मानव शरीर में तीन जीवन बलों या ऊर्जाओं का संयोजन करते हैं, जिन्हें ‘दोष’ भी कहा जाता है। वे नियंत्रित करते हैं कि आपका शरीर कैसे काम करता है। ये तीन दोषों के नाम हैं –
वात दोष (आकाश और वायु तत्व का अधिक होना) पित्त दोष (अग्नि और जल तत्व का अधिक होना)
कफ दोष (जल और पृथ्वी तत्व का अधिक होना)