2021 का आरंभ एक नई उम्मीद और हौसले के साथ हुआ था। विद्यार्थियों एवं शिक्षकों में ऑफलाइन शिक्षा की पुनः आरंभ को लेकर उत्साह था। शुरुआत के दो-तीन महीनों तक माध्यमिक शिक्षा ऑफलाइन अवश्य हुई थी, परंतु कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर के कारण इन अरमानों पर पानी फिर गया। फिर एक बार शिक्षा प्रणाली को ऑनलाइन माध्यम का सहारा लेना पड़ा।
आफत और असमंजस के इस काल में ऑनलाइन शिक्षा ही एकमात्र विकल्प है। कोरोना काल में ऑनलाइन शिक्षा वरदान साबित हुई परंतु इसी के साथ प्रश्न होता है कि क्या ऑनलाइन शिक्षा की आड़ में शैक्षिक संस्थानों द्वारा पूर्ण फीस लिया जाना उचित है?2020 में अधिकतम शैक्षिक संस्थानों ने 2-3 महीने की स्कूल फीस माफ अवश्य की थी परंतु बाद की फीस में किसी प्रकार की छूट देने से इनकार कर दिया। राज्य सरकारों के आव्हान के पश्चात भी कई स्कूलों ने फीस काम नहीं करी और तर्क दिया की इस प्रकार का आदेश देने के लिए सरकार को कोई कानून प्राप्त नहीं है। उनके अनुसार यदि वह स्कूल फीस कम करते हैं तो शिक्षकों के वेतन में कटौती करनी होगी जो अशासकीय शिक्षकों के साथ एक बहुत बड़ी नाइंसाफी होती । यह बात कुछ हद तक उचित भी है परंतु हमें इस पर भी विचार करने की आवश्यकता है कि स्कूल बंद होने के कारण ऑफलाइन शिक्षा प्रणाली में होने वाले कई प्रकार के खर्चों से स्कूलों को मुक्ति मिल गई है। हर स्कूल में ट्यूशन फीस के साथ अन्य गतिविधियों के शुल्क भी लिए जाते हैं। पिछले वर्ष स्कूलों ने उन शुल्कओं का भी लाभ लिया था। यदि हम उन लाभों से स्कूल की कमाई का अनुमान लगाएं तो यह औसत सालाना 15% का बैठता है। इसके अलावा भी ऑनलाइन शिक्षा का स्तर भी ऑफलाइन शिक्षा से कम ही होता है, जिस कारण ट्यूशन फी का पूर्ण मूल्य लेना भी उचित नहीं है।
जहां तक बात रही स्कूल की कमाई की तो आशासकीय स्कूलों में शिक्षक और विद्यार्थी का अनुपात औसतन 1: 200 के करीब होता है इसके विपरीत ट्यूशन फी और शिक्षक के वेतन का अनुपात अधिकतम 1:20 होता है। सभी परिस्थितियों में शैक्षिक संस्थान बहुत बड़े लाभ में हैं, विद्यार्थियों के मां-बाप से लाभ वसूलना किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है।
अशासकीय स्कूलों में अधिकतम मध्य वर्ग एवं उच्च वर्ग के परिवारों से संबंध रखने वाले बच्चे पढ़ने आते हैं जिनमें से अधिकतम व्यापारी वर्ग से संबंध रखने वाले होते हैं। कोरोना काल में हर वर्ग के लोगों की आमदनी पर आहत हुआ है जिसमें व्यापारी वर्ग सबसे ऊपर है। यदि ऐसे समय में स्कूल विद्यार्थियों की फीस कम नहीं करता है तो परिजनों पर अनुचित रूप से आर्थिक बोझ बढ़ाया जा रहा है।
3 मई 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने भी अपने आदेश में न्यूनतम फीस में 15% की कटौती करने का आदेश दिया है। न्यायालय ने स्कूलों को निर्देश दिया कि वे किसी भी छात्र को बकाया शुल्क के भुगतान के लिए ऑनलाइन कक्षाओं या शारीरिक कक्षाओं में भाग लेने से न रोकें।न्यायालय ने अपने निर्देश में यह भी कहा,“अपीलकर्ता (निजी वित्तविहीन विद्यालयों का स्कूल प्रबंधन) शैक्षणिक वर्ष 2019-20 के लिए 2016 के अधिनियम के तहत तय किए गए अनुसार अपने छात्रों से वार्षिक स्कूल शुल्क जमा करेगा, लेकिन इसके द्वारा उस राशि पर 15 प्रतिशत की कटौती करके उपलब्ध कराई गई सुविधाओं के बदले में छूट प्रदान करेगा। ”
15% एक न्यूनतम कटौती ही मानी जा सकती है परंतु दिल्ली जैसे शहरों में स्कूल जहां फीस आसमान छूती है ऐसे स्थानों पर 15% कटौती करने से भी परिजनों का बोज संतोषजनक रूप से कम नहीं होता है। अतः इन स्थानों को अधिक कटौती की आवश्यकता है, जो केवल स्वयं शैक्षिक संस्थान ही कर सकते हैं।आज के परिवेश में प्रत्येक व्यक्ति को आर्थिक तोर से संभाल कदम बड़ाने की आवश्यकता है साथ ही विद्यार्थी को शिक्षा भी अभीराम उपलब्ध होनी चाहिए। हम विद्यार्थियों की शिक्षा से समझौता नहीं कर सकते परंतु इस समय परिजन भी अपने ऊपर आर्थिक बोझ बढ़ाने की स्थिति में नहीं है। अंत में हम केवल यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि शैक्षिक संस्थानों को परिजनों के बोझ को लेकर संवेदनशील होना चाहिए और अपनी फीस में एक निश्चल कटौती करने की आवश्यकता है।