दिल्ली विधानसभा चुनावों का बिगुल बज चुका है। सभी राजनैतिक पार्टियां मैदान में उतर भी चुकी हैं। 8 फरवरी को दिल्ली में विधानसभा चुनावों के लिए मतदान होना है। इस बार का चुनाव हर पार्टी के लिए अहम रहने वाला है। 2015 में पहली बार दिल्ली की सत्ता में काबिज हुई आम आदमी पार्टी और दिल्ली के मुख्यमंत्री रहे अरविंद केजरीवाल के सामने दिल्ली की जनता का विश्वास जीतने की चुनौती होगी जबकि भाजपा के लिए दिल्ली के चुनाव सीएए और एनआरसी जैसे फैसलों का भविष्य तय करेंगे।
इस बार का चुनाव आप पार्टी से ज्यादा भाजपा के लिए मुश्किल भरा रहने वाला है। जिसका सबसे बड़ा कारण है मुख्यमंत्री के चेहरे की अब तक घोषणा न कर पाना। एक तरफ जहां आम आदमी पार्टी अपने सबसे बड़े उम्मीदवार अरविंद केजरीवाल के नाम पर चुनाव लड़ रही है तो वहीं भाजपा के पास इस समय जनता से वोट मांगने के लिए मुख्यमंत्री चेहरे के लिए कोई दावेदार नहीं है। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर कब तक भाजपा पीएम मोदी के नाम पर विधानसभा चुनाव लड़ती रहेगी। झारखण्ड और मध्यप्रदेश में हुए चुनावों के तर्ज पर दिल्ली में भी बीजेपी नरेंद्र मोदी के चेहरे को आगे रखकर वोट मांगे थे। नतीजा दोनों ही राज्य भाजपा के हाथ से फिसल गए।
साल 2015 में दिल्ली में हुए चुनाव में भी पीएम मोदी ने भाजपा के लिए कई रैली की थी लेकिन तब भी भाजपा 70 में से 3 सीट ही जीत पाई थी। तब भी दिल्ली की जनता ने यही कहा था कि संसद में मोदी को वोट देंगे और राज्य में केजरीवाल को। क्योंकि दिल्ली की जनता भी समझती है कि मोदी किसी राज्य के सीएम नहीं बन सकते। हालाँकि ऐसा नहीं है कि जनता मोदी को पसंद न करती हो लेकिन लोगों को भाजपा को वोट देने के लिए एक ऐसे चेहरे की जरूरत है जो उनकी समस्याओं को बेहतर तरीके से सुन सके। ऐसे में भाजपा को जल्द समझना होगा कि विधानसभा चुनावों को सिर्फ पीएम मोदी के नाम पर नहीं लड़ा जा सकता।