पूरा देश इस समय वैश्विक महामारी कोरोना से ग्रस्त है। चारों तरफ मौत का तांडव हो रहा है। आलम ये है कि लोगों को सांस लेने के लिए भी बोली लगानी पड़ रही है। ये स्थिति कब सुधरेगी कोई नहीं जानता लेकिन इस सबके बीच एक बात तो साबित हो चुकी है कि भारत में अगर जीवन व्यापन करना है यो आपको राजनीति की भेंट चढ़ना ही होगा। पिछले 2 साल इसी बात का प्रमाण है। देश आज जिस स्थिति में है उसका एक कारण इस महामारी के दौर में भी सत्ता रूढ़ सरकार और विपक्ष के बीच एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप का क्रमिकता से जारी रहना भी है। विपक्ष इन दिनों पूरी तरह से सरकार पर हमलावर है। सरकार की मदद करना तो दूर, विपक्ष हर मुद्दे पर सवाल खड़े कर जनता के बीच भ्रम पैदा कर रहा है। ये बात लाज़मी है कि जिस बीमारी को 2 करोड़ की जनसंख्या वाले देश भी काबू नहीं कर पाए उसे 135 करोड़ की जनसंख्या वाला देश कैसे काबू कर सकता है। इटली, अमेरिका चीन और अन्य देश की स्वास्थ्य व्यवस्था ने भी कोरोना के आगे घुटने टेक दिए तो भारत के लिए इस हालात पर काबू पाना मुश्किल तो होने ही वाला था। इस दौर में कई देश भारत और यहां की जनता की हौसला अफजाई कर रहें है लेकिन विपक्ष किसी न किसी मुद्दे पर भारत सरकार को घेरने की कोशिश में लगा है।
अब जिस मुद्दे ने एक नया विवाद पकड़ लिया है वो है केंद्र सरकार का सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट। इस परियोजना के तहत एक नए संसद भवन और नए आवासीय परिसर का निर्माण किया जाएगा। प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति कार्यालय के नवनिर्मित निर्माण के साथ इंडिया गेट से लेकर राष्ट्रपति भवन के बीच 3 किलोमीटर के राजपथ पर भी इस परियोजना के तहत परिवर्तन किया जाएगा। साउथ ब्लॉक और नॉर्थ ब्लॉक के बीच कई बड़े भवनों का पुनः निर्माण किया जाएगा। अब सरल शब्दों में समझाते हैं कि आखिर नए संसद भवन के निर्माण और पूरे सेंट्रल विस्टा के प्रोजेक्ट का काम पूरा होने के बाद क्या कुछ बदल जायेगा और ये प्रोजेक्ट क्यों आने वाले समय के लिए अहम है।
दरअसल इस समय केंद्र के लिए लगभग 51 मिनिस्ट्री काम कर रही है। हैरानी वाली बात ये है कि इन 51 मिनिस्ट्री में से 29 ऐसी है जो सेक्रेटेरियेट से ही बाहर है। 10000 से ज्यादा कर्मचारियों वाले मिनिस्ट्री इन ऑफिसिस में हर साल 1 हज़ार करोड़ का भुगतान किराए के तौर पर खर्च किया जाता है। सबसे बड़ी और अहम बात ये है की इन मिनिस्ट्री के एक दूसरे से दूर होने के कारण काम काज के समय और परिवहन पर भी असर पड़ता है। अब ऐसे में अगर एक ही विस्टा में मिनिस्ट्री के सारे ऑफिसिस आ जाये तो हर विभाग में बेहतर समन्वय बैठाया जा सकता है।
दूसरी बात, साल 2026 तक देश की जनसंख्या 145 करोड़ के पार जाने का अनुमान अभी से लगाया जा चुका है। अब अगर देश की जनसंख्या बढ़ी तो जाहिर तौर पर संसद में डीलिमिटेशन के साथ प्रतिनिधियों की संख्या में भी इजाफा होगा। इसी को मद्देनज़र रखते हुए नए संसद भवन निर्माण किया जा रहा है जहां 888 लोकसभा सांसद और 384 राज्यसभा सांसद एक साथ बैठ सकते है। अब बात करें खर्चे की जिस पर विपक्ष सबसे ज्यादा सवाल खड़े कर रहा है तो नए संसद भवन के निर्माण की लागत 862 करोड़ है जबकि पूरे विस्टा प्रोजेक्ट पर 20 हज़ार करोड़ खर्च किये जा रहे है।
विपक्ष का आरोप है कि सरकार देश की जनता के पैसों को अपने स्वार्थ के लिए बर्बाद कर रही है जबकि असल में सरकार टीकाकरण अभियान और अन्य मेडिकल सुविधाओं को गति देने के लिए इस समय इस प्रोजेक्ट से दुगनी लागत से हर साल के तौर पर 3 लाख करोड़ खर्च कर रही है। दूसरी तरफ UPA की सरकार के कार्यकाल के दौरान सत्ता में बैठे नेताओं ने नए संसद भवन के निर्माण के लिए अर्जी लगाई थी। तब नेताओं ने एक सुर में कहा था कि हमें नया संसद भवन चाहिए। तो फिर अब बवाल किस बात का? इस प्रोजेक्ट के पूरा होने के बाद सीधे तौर पर सरकार 1 हज़ार करोड़ की बचत कर पाने में कामयाब होगा। सारे मंत्रालय एक जगह आने से काफी कुछ बदल जायेगा और आने वाली सरकार के लिए काम करना आसान हो जाएगा। अगर इसके विरोध की बात करें तो असल में विपक्ष को इस बात का डर है कि कहीं मोदी इस बात का भी क्रेडिट ना ले जाये और जनता के बीच एक बार फिर पॉपुलर ना हो जाये। हम किसी सरकार के पक्ष में नहीं है लेकिन विपक्ष को समझना होगा कि इस दौर में वह सरकार का पूर्ण रूप से सहयोग करें क्योंकि ये राष्ट्र और यहां की जनता उनकी भी है।