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धामी गोली कांड के अमर शहीदों व स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि

*स्वतंत्रता संग्राम में रजवाड़ाशाही के ख़िलाफ़ संघर्ष तथा धामी गोलीकांड*

देश जब आज स्वतंत्रता-प्राप्ति की 75वीं वर्षगाँठ मना रहा है तो इस अवसर पर हिमाचल के स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानी याद आना स्वाभाविक है। आज 16 जुलाई के दिन हुए बहुचर्चित धामी गोलीकांड के शहीदों को भुलाया नहीं जा सकता है।

स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में जहाँ ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध संघर्ष चलता रहा वहीं जनता देशी रियासतों के शासकों व जागीरदारों के अत्याचारों से भी तंग आ चुकी थी। ‘बेगारी-प्रथा’ और मनमाने करों को जनता पर थोपने पर लोगों में असंतोष उत्पन्न हो रहा था। देश के कोने-२ में अलग-२ तरीकों से आज़ादी के लिए संघर्ष जारी था। ऐसे वर्तमान हिमाचल प्रदेश की पहाड़ी रियासत ‘धामी’ में भी यहाँ के राजा के विरुद्ध जनता में नाराज़गी बढ़ती जा रही थी। हिमाचल के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में धामी गोलीकांड को एक काले अध्याय के रूप में जाना जाता है। धामी एक छोटी सी रियासत थी जो राणा के शासन के अधीन थी। राजा की मनमानी के खिलाफ आवाज उठाने के बाद धामी रियासत में 1939 में घटित हुए धामी गोलीकांड की घटना से यह रियासत पूरे देश में चर्चा में रही।

‘शिमला हिल्स स्टेट्स’ में धामी रियासत एक ऐसी रियासत थी कि जो किसी अन्य राजा या रियासत के अधीन नहीं रही। कुछ इतिहासकारों के अनुसार धामी रियासत का क्षेत्र पूर्व में बिलासपुर रियासत के राजा के अधीन था।

कालांतर में एक समय दिल्ली के शासक रहे पृथ्वी राज चौहान के वंशज घूमते हुए धामी आ गए। राजपरिवार के वंशज अधिक शिक्षित थे। स्थानीय निवासी बहुत भोले-भाले थे। धामी की जनता ने उन्हें अपना राजा स्वीकार कर लिया।

73 वर्ग किलोमीटर में फैली इस रियासत की राजधानी हलोग थी। धामी में अभी भी सैकड़ों वर्ष पहले बने महलों को देखा जा सकता है। धामी रियासत के सबसे चर्चित राजा दलीप सिंह रहे। यद्यपि स्वतंत्रता-प्राप्ति के पश्चात् देशी रियासतों के भारतीय गणराज्य में विलय के बाद राजशाही व्यवस्था समाप्त हो गई थी। परंतु राजपरिवार की परंपरा के अनुसार दिलीप सिंह 1908 से 1987 तक धामी रियासत के राजा रहे। इसके बाद राजा प्रताप सिंह गद्दी पर बैठे और राज-परंपरा के अनुसार उन का शासन-काल 1987 से 2008 तक रहा।

धामी के लोगों की मांग थी कि राजा द्वारा बेगारी प्रथा’ को समाप्त किया जाए, कर में 50 प्रतिशत की कमी की जाए और रियासती प्रजामंडल धामी की फिर से स्थापना हो। इसके चलते 1937 में एक धार्मिक सुधार सभा ‘प्रेम प्रचारिणी सभा’ का गठन किया गया। जिसके मुखिया पंडित सीता राम थे। उन्होंने ही इन प्रमुख मांगों को उठाया था।

अपने मांग-पत्र को ले कर 1500 के करीब लोगों ने 16 जुलाई 1939 को शांतिपूर्ण तरीके से रोहड़ू क्षेत्र के रहने वाले भागमल सोहठा की अगुवाई में धामी की तरफ कूच किया। लेकिन धामी पहुंचने से पहले ही वर्तमान में शिमला-मंडी राष्ट्रीय उच्च मार्ग पर घणाहट्टी पहुंचने से ठीक पहले ही भागमल सोहठा को राजा के सिपाहियों द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया।

अपने मुखिया भागमल के गिरफ्तार होने से लोगों में भारी रोष उत्पन्न हो गया। जनता की भीड़ पुलिस के लाठी-डंडों की मार झेलते हुए धामी के राणा के महल की ओर बढ़ती जा रही थी। राणा उग्र भीड़ से घबरा गया और आंदोलन को दबाने के लिए गोली चलाने के आदेश दे दिए।

हिमाचल के इतिहास में हुई गोलीबारी की यह पहली घटना थी। इस दमनकारी घटना में दो व्यक्ति उमादत्त और दुर्गादास शहीद हो गए तथा सैंकड़ों लोग घायल हो गए।

इस घटना के बाद पंडित सीता राम, भास्करा नंद और राज कुमारी अमृत कौर की अगुवाई में एक दल महात्मा गांधी तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू से मिला। जिसके बाद राष्ट्रीय नेताओं का ध्यान इस पहाड़ी रियासत की ओर आकर्षित हुआ। इस घटना को लेकर महात्मा गांधी और पंडित नेहरू ने कड़ी निंदा की थी। इस की जांच के लिए कमेटी का गठन भी किया गया था।*

आज हम जिस तरह खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं इस हेतु हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने कितने कष्ट सहन किए तथा कितना संघर्ष किया है यह हमें सदैव याद रखना चाहिए।

*’धामी गोलीकांड’ के अमर शहीदों तथा स्वतंत्रता सेनानियों को भावभीनी श्रद्धांजलि*
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