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बहुत कुछ बयां करते है हरियाणा-महाराष्ट्र चुनावों के नतीज़े!

साल 2014 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी केंद्र में पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता पर काबिज हो पाई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अकेले दम पर सरकार बनाकर एक नया इतिहास लिखा था। 2014 के लोकसभा चुनाव जीतना भाजपा के लिए बेहद खास था। उससे कई ज्यादा महत्व उसी समय हरियाणा और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों का था। आज से पांच साल पहले इसी समय भाजपा ने हरियाणा और महाराष्ट्र में नया रिकॉर्ड बनाया था। दोनों राज्यों में पहली बार भाजपा के मुख्यमंत्री राजगद्दी पर बैठ पाये थे। उस दृश्य को देख कर विपक्ष भी यही सोचने लगा था कि अब इन दोनों राज्यों में वापसी कर पाना उनके लिए इतना आसान नहीं होगा।

शायद विपक्ष की ये सोच भाजपा पार्टी के लिए अहँकार बन गई। तभी 2019 का जनादेश पार्टी के नेताओं के लिए सबसे बड़ा सबक बनकर आया। महाराष्ट्र और हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी अपनी सरकार बना चुकी है लेकिन इस बार कहानी कुछ और है। जनता ने साफ कर दिया है कि अब केवल राष्ट्रवाद का मुद्दा किसी आम चुनाव में काम नहीं आने वाला। जनता ने स्पष्ट कर दिया है कि किसी भी पार्टी को उनके प्रदर्शन और विश्वसनीयता के आधार पर चुना जाएगा।

2014 में मनोहर लाल खट्टर ने 47 सीट जीत कर पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाने का दावा पेश किया था। लेकिन पार्टी के विधायकों के ‘मैं’ के घमंड का असर ये हुआ कि 2019 में हरियाणा में दुष्यन्त चौटाला के साथ सरकार बनाने की नौबत आ गयी। वहीं महाराष्ट्र में कुछ ऐसा ही समीकरण बैठता नज़र आ रहा है। पूर्ण बहुमत के साथ राज्य में सरकार बनाने का दावा ठोकने वाली भाजपा पार्टी को शिवसेना पर निर्भर रहना पड़ रहा है।

अब अगर नतीजों के निष्कर्ष की बात करें तो विपक्ष की तरफ से कुछ ऐसा नहीं किया गया जिसने बीजेपी को नुकसान पहुंचाया हो। पार्टी को समझना होगा कि राज्यों के हर चुनाव अमित शाह और मोदी जैसे सशक्त नेताओं पर केंद्रित नहीं हो सकते हैं। अगले साल दिल्ली, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों में भाजपा को अतिविश्वास से बाहर आकर जमीनी संगठन को मजबूत करने की आवश्यकता होगी।

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