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हे मातृभूमि तेरे चरणों में शिर नवाऊँ…

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के एक प्रखर सैनानी एवं मातृभक्त कवि “राम प्रसाद बिस्मिल”, जिन्होने अपनी मातृभूमि की रक्षा के लिए ब्रिटिश सरकार को चुनौती दी और केवल ३० वर्ष की आयु में ही हँसते-हँसते फांसी के फंदे पर झूल गये। एक सच्चे देशभक्त होने के साथ-साथ वे एक कवि भी थे। उनकी कविताओं में मातृभूमि के प्रति प्रेम तथा देश के लिए मर मिटने की भावना प्रभावी रूप से प्रत्यक्ष होती थी। तो आईये! उन्हें याद करते हुए, उन्हीं की एक रचना को पढ़कर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करें।

हे मातृभूमि ! तेरे चरणों में शिर नवाऊँ ।
मैं भक्ति भेंट अपनी, तेरी शरण में लाऊँ ।।

माथे पे तू हो चन्दन, छाती पे तू हो माला।
जिह्वा पे गीत तू हो, तेरा ही नाम गाऊँ ।।

जिससे सपूत उपजें, श्रीराम-कृष्ण जैसे।
उस धूल को मैं तेरी निज शीश पे चढ़ाऊँ ।।

माई समुद्र जिसकी पदरज को नित्य धोकर।
करता प्रणाम तुझको, मैं वे चरण दबाऊँ ।।

सेवा में तेरी माता ! मैं भेदभाव तजकर।
वह पुण्य नाम तेरा, प्रतिदिन सुनूँ सुनाऊँ ।।

तेरे ही काम आऊँ, तेरा ही मन्त्र गाऊँ ।
मन और देह तुझ पर बलिदान मैं चढ़ाऊँ ।।

राम प्रसाद “बिस्मिल”

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