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पर्यावरण

अरे जरा देखो गौर से… हमारी पृथ्वी क्या से क्या हो रही है

कुदरत से खिलवाड़ कर दुनियां बनावटी चकाचौंध में खो रही है

उन्नति की राह पर चलकर चाँद पर पहुंचे हैं लोग

प्रगति की राह पर हमारी ही धरती बंजर हो रही है,

मुरझा रहे हैं कहीं पेड़- पौधे और डालियाँ

सूख रही हैं कहीं सावन के बूंदों की किलकारियाँ

उससे बेपरवाह हो लोग बना रहे हैं घरों में स्विमिंग पुल

और कागज की फुलवारियां,

अरे जरा समझो गौर से… हमारा पर्यावरण कितना बदल रहा है

जल, अग्नि और वायु का तालमेल कैसे बिखर रहा है

अपने ही जीव- तंत्रो से प्रकृति होने लगी है दूषित

कृत्रिम खुशबुओं से बस हमारा वातावरण ही  महक रहा है ।

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