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कहानी- माँ की पर्ची (ये कहानी पढ़कर यकीनन आपकी आँखें भी नम हो जाएगी)

एक शहर में एक पति-पत्नी अपना जीवन खुशी से व्यतीत कर रहे थे। पति का नाम था- ‘राजेश’ और पत्नी का नाम था- ‘मीरा’। राजेश की अच्छी नौकरी थी और घर में किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी। दिसंबर का महीना था और पूरे शहर में कड़ाके की ठंड पड़ रही थी। राजेश ने सोचा कि यहां इतनी ज्यादा ठंड है तो गाँव में तो और भी ज्यादा ठंड पड़ रही होगी।

उसने अपनी पत्नी से कहा कि- मीरा ! क्यों ना कुछ दिन के लिए गाँव से माँ को यहां बुला लें। गाँव में तो और भी ज्यादा ठंड पड़ती है।
मीरा इस बात से सहमत ना थी लेकिन एक अच्छी पत्नी होने के नाते वह माँ को बुलाने के लिए राज़ी हो गई। माँ को गाँव से बुलाकर राजेश काफी खुश था। राजेश ने अपनी माँ को एक अलग कमरा दे दिया और उसमें हीटर, टीवी आदि सभी सामान भी लगवा दिया। सुबह दफ्तर जाने से पहले राजेश माँ को नमस्ते कर निकल जाता था और शाम को घर आकर खाना खाते ही सोने चले जाता था। कुछ दिन तक रोज इसी तरह से चलता रहा। इतने में ही न्यू ईयर नज़दीक आ गया।

मीरा ने राजेश से कहा, – अजी सुनते हो! क्यों ना हम न्यू ईयर के लिए शॉपिंग करने चलें। जब से तुम्हारी माँ यहाँ आई है, मैं तो बिल्कुल घर से बाहर ही नहीं निकल पाई। ऐसा लगता है मानों मैं तो हर वक्त के लिए केवल घर में कैद हो गई हूँ।
राजेश ने कहा- तुम सही कह रही हो। इसी बहाने हमें थोड़ा रोमांस का समय भी मिल जाएगा।
घर से निकलते हुए राजेश ने कहा- मीरा एक बार माँ से भी पूछ लो कि नए साल पर उन्हें क्या चाहिए।
मीरा ने कहा- इस उम्र में तुम्हारी माँ को क्या चाहिए होगा। कपड़े उनके पास है ही और खाना सुबह-शाम उन्हें मैं दे ही देती हूँ। उनसे कुछ भी पुछने की जरूरत नहीं है। हम दोनों केवल अपने लिए ही शॉपिंग कर आते है।

राजेश ने मीरा से कई बार कहा कि कम से कम फॉर्मेलिटी के लिए ही सही एक बार माँ से पूछना तो चाहिए। इतने में ही मीरा का पारा चढ़ गया और वह गुस्से में बोली- तुम्हें अपनी माँ की इतनी चिंता हो रही है तो तुम खुद ही क्यों नहीं पूछ लेते। वैसे भी वो मुझे इस घर की बहू समझती ही कहां हैं। पूरे दिन नौकरानी की तरह मुझसे काम कराती रहती है। कुछ देर तक मीरा इस तरह से ही बड़बड़ाती रही।

राजेश ने अपना फर्ज़ समझते हुए माँ से पुछ लिया- माँ बताओ तुम्हे नए साल पर क्या चाहिए। अपने लिए नए कपड़े या कुछ और सामान। जो भी चाहिए हो मुझे बता दो।
माँ ने कहा- नहीं बेटा मुझे कुछ नहीं चाहिए। मेरे पास जरूरत का सब सामान है।
राजेश ने माँ से फिर पूछा- माँ एक बार और अच्छे से सोच लों कि तुम्हें कुछ चाहिए तो नहीं।
इस बार माँ ने कहा- हाँ बेटा मुझे भी कुछ चाहिए। कहीं तुम अपने और बहु के सामान के साथ मेरा सामान भूल ना जाओ, इसलिए मैं एक पर्ची पर लिखकर दे देती हूँ। माँ ने एक पर्ची पर कुछ लिखकर राजेश को दे दिया।
मीरा ने बड़ी पर्ची देखी तो बोली- इस उम्र में इतनी बड़ी पर्ची। आखिर इतना सब सामान का क्या करेगी वो। जरूर गाँव में अपने दूसरे बेटे के यहाँ भेजेगी वो ये सब सामान।
मीरा और राजेश ने अभी तक ये पर्ची खोलकर भी नहीं देखी थी। राजेश ने कहा- चलो कोई बात नहीं। माँ कुछ दिनों के लिए ही तो आई है। इस बार उनके लिए सामान ला देते है।
मीरा ने मायूस होकर हाँ में सिर हिलाते हुए कहा- लेकिन पहले मैं अपना सामान खरीदूंगी। उसके बाद तुम अपनी माँ का ये सब सामान खरीदना।
राजेश और मीरा ने अपनी शॉपिंग पूरी कर ली। अब मीरा बहुत खूश थी। लेकिन राजेश ने कहा मीरा अभी हमारी शॉपिंग खत्म नहीं हुई है। माँ की दी हुई पर्ची का सामान लेना अभी बाकी है।
मीरा ने कहा- मैं तो आराम से कार में बैठी हूँ। तुम जाकर सामान ले आओ। मैं तो बहुत थक गई हूँ।
राजेश ने कहा- चलो एक बार देख तो लेते है कि पर्ची में लिखा क्या है। राजेश ने पर्ची खोली और पढ़ने लगा। पर्ची पढ़ते हुए राजेश का चेहरा सुन्न हो गया था। उसके चेहरे के हाव-भाव ही गायब हो गए थे। पर्ची पूरी पढ़ने के बाद उसकी आँखे नम हो गई और दो आँसु भी टपक गए।
मीरा ने ये देखा तो राजेश के हाथ से पर्ची छीनते हुए कहा- आखिर ऐसा क्या मांग लिया तुम्हारी माँ ने अपने दूसरे बेटे के लिए। जरूर कुछ महंगा सामान ही मांगा होगा। उन्हें तो लगता है कि यहाँ पैसों का पेड़ लगा हुआ।
राजेश ने इस पर कुछ नहीं कहा। मीरा ने भी वह पर्ची पढ़ी। पर्ची पढ़ते ही वह फूट-फूटकर रोने लग गई। आप भी सोच रहे होंगे कि आखिर माँ ने पर्ची में ऐसा क्या लिखा था, जिसे पढ़कर दोनों की आँखें नम हो गई।

माँ ने पर्ची में लिखा था- बेटा नए साल पर मुझे कुछ नहीं चाहिए। आगे आने वाले अन्य त्यौहारों पर भी मैं तुमसे कुछ नहीं मांगूगी। हाँ, अगर तुम्हारे शहर की किसी दुकान या मॉल में थोड़ा-सा वक्त हो तो वह ले आना। मुझे बस तुम्हारा थोड़ा-सा समय चाहिए। मैं अब बूढ़ी हो गई हूँ। मैं चाहती हूँ रोज़ाना चंद देर के लिए ही सही लेकिन तुम दोनों मेरे पास आकर बैठो। मेरी गोदी में अपना सिर रखों और मैं उसे प्यार से सहलाऊं। बुढ़ापे का मेरा अकेलापन मैं तुम्हारे साथ बांटना चाहती हूं। जब तक मैं तुम्हारे घर हूँ बस यही तुमसे चाहती हूँ। क्या पता मैं अगला नया साल देख भी पाऊं या नहीं।

इस कहानी से हमें ये बाद समझनी चाहिए कि हमें अपने माता-पिता का अहसान कभी नहीं भूलना चाहिए। उन्होंने हमें पाल-पोसकर बढ़ा करने में कितनी महनत की। अपनी कितनी ही इच्छाएं उन्होंने हमारी खातिर त्याग दी। और अब जब वे बूढ़े हो गए हैं तो उन्हें हम अकेला छोड़ देते है। उन्हें बुढ़ापे में ठीक उसी प्रकार के प्यार की आवश्यकता होती है, जैसा प्यार उन्होंने हमें हमारे बचपन में दिया था।

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