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क्या देश को निगलती जा रही है कट्टरता का विषयुक्त बेल ?

कोरोना वायरस से बचाव हेतु देशव्यापी लॉकडाउन का पिछले दिनों कैसे दिल्ली के निजामुद्दीन में बसे तब्लीगी जमातियों ने मज़ाक बना के रख दिया ये अब किसी से छुपा नहीं हैI सुपर स्प्रेडर बन चुके ये जमाती आज देश में कुल कोरोना संक्रिमितों में से 30% से अधिक की तादाद में हैं और अगर देश कोरोना संक्रमण के स्तर-3 यानि कम्युनिटी ट्रांसमिशन में पहुंचता है तो इसका कारण तब्लीगी जमात को ही माना जाएगा। बड़े अचरज की बात ये भी है कि अभी भी कई जमाती अलग-अलग राज्यों में पुलिस से छुपे बैठे हैं और अपने समाज के साथ-साथ पूरी मानवता को भी खतरे में डाल रहे हैं। ऐसे में कहना गलत नहीं होगा कि आज देश दोहरी लड़ाई लड़ रहा है- एक तो कोरोना वायरस से और दूसरा इन मज़हबी कट्टरपंथियों से! इस्लाम का ठेकेदार बनने की होड़ में लगा तब्लीगी जमात आज अपने ही धर्मगुरुओं के निशाने पर है और चौतरफा बदनामी झेल रहा है।

बढ़ते हुए दिनों के साथ रोज़ तब्लीगी जमात के नए-नए राज़ उजागर हो रहे हैं और हमारी सरकारों, प्रशासन और हमारी जागरूकता पे सवालिया निशान लगा रहे हैं। रोटी, कपड़े और मकान के बीच फंसे एक आम भारतीय के परिदृश्य से तब्लीगी जमात जैसा संगठन कुछ दिनों पहले तक अनदेखा व अनसुना था। वहीं, आती-जाती सरकारें भी करीब 100 साल पुराने इस संगठन की करतूतों से अबतक खुदको बचती-बचाती नज़र आईं हैं। गौरतलब है कि इसकी जड़ें दक्षिण एशिया के साथ-साथ दुनिया के विभिन्न देशों तक फैली हुईं हैं जिसके कई उद्देश्यों में से एक है कि कैसे मुसलामानों को कट्टर मुसलमान बनाया जाए और जैसे 1400 में पहले मुसलमान रहा करते थे, वैसे ही आज के मुसलामानों को रहने की हिदायत दी जाए। जिसके अंतर्गत भाषा, पोशाक, रहन-सहन, खान-पान इत्यादि शामिल है। इसके साथ ही ये गैर-इस्लामी चीज़ें छोड़ने की भी वकालत करता है।

असल में तब्लीगी जमात के संस्थापक मौलाना इलियास, राजस्थान के मेवाती मुसलामानों के द्वारा निभाई जा रहीं कुछ हिंदू परंपराओं जैसे गोमांस न खाना, कड़े धारण करना, चोटी रखना व अपने नाम भी हिंदुओं जैसे रखने से खासे चिंतित हो गए थे। ऐसे में उन्होंने इन कथित ‘भटके हुए’ मुसलामानों को सही राह दिखाने का फैसला किया और अपनी जमात में कुछ जमातियों को कट्टर इस्लामी व्यवहार का प्रशिक्षण देकर उन्हें मेवातियों में प्रचार करने हेतु भेज दिया। इन जमातियों के संपर्क में आते ही देखते-ही-देखते मेवात के मुसलमान पूरी तरह से कट्टरता के जाल में उलझ गए और वहां मस्जिदों का अंबार लग गया। वो मुसलमान जो कल तक हिंदुओं के साथ कंधे-से-कंधा मिलाकर चल रहे थे वो अब खुदको मुख्यधारा से अलग कर चुके थे और अपने आकाओं के द्वारा भरे गए सांप्रदायिक ज़हर को पालने-पोसने में निरंतर लग गए थे।

सवाल ये उठता है कि जब इस्लाम की इन कट्टरवादी मान्यताओं को बढ़ावा मिल रहा था तब क्या किसी ने भी इनकी आलोचना नहीं की? इसका जवाब हमें स्वामी विवेकानंद, 1896 में शिकागो में दिए अपने चौथे भाषण में देते हैं जब वे इस्लाम की रूढ़िवादी बातों से सबको अवगत करवाते हैं। वे अपने भाषण में कहते हैं, ’स्वयं अपने से ही जकड़ी रहने वाली जाति ही समग्र संसार में सबसे अधिक क्रूर और पातकी सिद्ध हुई है। अरब के पैगम्बर द्वारा प्रवर्तित धर्म से बढ़कर द्वैतवाद से सटने वाला कोई दूसरा धर्म आजतक नहीं हुआ, और इतना रक्त बहाने वाला तथा दूसरों के प्रति इतना निर्मम धर्म भी कोई दूसरा नहीं हुआ।’ स्वामी विवेकानंद चेताते हुए आगे कहते हैं, ‘कुरान का यह आदेश है कि जो मनुष्य इन शिक्षाओं को न माने उसको मार डालना चाहिए; उसकी हत्या कर डालना ही उस पर दया करना है! और सुंदर हूरों तथा सभी प्रकार के भोगों से युक्त स्वर्ग को प्राप्त करने का सबसे विश्वस्त रास्ता है- काफिरों की हत्या करना! ऐसे कुविश्वासों के फलस्वरूप जितना रक्तपात हुआ है, उसकी कल्पना कर लो!’

वहीं, डॉ. बी.आर.अम्बेडकर अपनी पुस्तक ‘पाकिस्तान और भारत का विभाजन’ में मुस्लिम मानसिकता का सिलसिलेवार तरीके से उल्लेख करते हुए कहते हैं, ‘इस्लाम का दूसरा आवरण यह है कि यह सामाजिक स्वशासन की एक पद्धति है जो स्थानीय स्वशासन से मेल नहीं खाता क्योंकि मुसलमानों की निष्ठा, जिस देश में वे रहते हैं, उसके प्रति नहीं होती बल्कि वह उस धार्मिक विश्वास पर निर्भर करती है, जिसका कि वे एक हिस्सा हैं। एक मुसलमान के लिए इसके विपरीत या उल्टे मोड़ना अत्यंत दुष्कर है। जहाँ कहीं इस्लाम का शासन है, वहीं उसका अपना विश्वास है। दूसरे शब्दों में इस्लाम एक सच्चे मुसलमान को भारत को अपनी मात्रभूमि और हिंदुओं को अपना निकट संबंधी मानने की इजाज़त नहीं देता।’

इसे इस देश के मुसलमानों का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि उन्हें आजतक सही बौद्धिक नेतृत्व नहीं मिला। वहीं, जो मुसलमान अपने मज़हब से पहले देश को चुनता है उसे यही लोग नकार देते हैं और जो समाज में वैमनस्य का भाव उत्पन्न करवाता हो और हिंदुओं से दूरी बनाने की पैरवी करता हो उसे ये अपने सीने से लगा लेते हैं। ज़्यादातार मुस्लिम बौद्धिक वर्ग मुस्लिम केंद्रित अध्ययन-शोध में लीन रहकर यह सिद्ध करने में मग्न रहे कि मुस्लिम कितने उपेक्षित एवं असुरक्षित हैं। इसीका नतीजा यह हुआ कि आज देश के मुसलमानों में ये बात घर कर गई है कि उनके साथ सरकारें बदसलूकी करतीं हैं व उन्हें उचित हक नहीं मिलता। वहीं, हकीकत इससे बहुत अलग है और इस देश में हिंदुओं के बाद सबसे बड़ी जनसंख्या मुसलमानों की होने के बावजूद भी उन्हें अल्पसंख्यक का दर्जा दिया गया है और इसके एवज में उनके लिए ही समर्पित अलग से अल्पसंख्यक मंत्रालय भी बनाया गया है जिसका कार्य ही उनकी ज़रूरतों व हक की पूर्ती करना है। यहां गलती उन राजनीतिक पार्टियों की भी है जिन्होंने मुसलमानों को सिर्फ अपने वोट बैंक की राजनीति करने के लिए ही इस्तेमाल किया। अपने इस राजनीतिक लाभ के लिए वे मुस्लिम तुष्टिकरण करने से भी बाज़ नहीं आते फिर भले ही वे हिंदुओं में असुरक्षा व संवेदनाओं की घोर उपेक्षा ही क्यों न कर जाते हों। इस बीच मुस्लिम विद्वान भी मुसलमानों को ये नहीं समझा पाते कि हिंदुओं के प्रति भी उनका कुछ फर्ज़ बनता है और गंगा-जमुनी तहज़ीब बनाए रखने की ज़िम्मेदारी उनकी भी उतनी ही है जितनी हिंदुओं की।

समय रहते काटा न गया कट्टरता का ये विष-बेल आज तब्लीगी जमात बनकर हम सबके सामने आ खड़ा हुआ है। तब्लीगी जमात के मौलाना साद कहते हैं, ‘अगर तुम्हारे तजुर्बे में यह बात है कि कोरोना से मौत आ सकती है तो भी मस्जिद में आना बंद मत करो, क्योंकि मरने के लिए इससे अच्छी जगह और कौन सी हो सकती है।’ मौलाना के मुताबिक़ कोरोना दूसरे धर्म के लोगों द्वारा साजिश है मस्जिदें बंद करवाने की और ये कोई बीमारी नहीं है। आज इसी जाहिलपन के कारण कोरोना वायरस संक्रमित जमाती देश के 19 राज्यों में संक्रमण फैला रहे हैं और पुलिस से छुपते-बचते फिर रहे हैं। देश के प्रत्येक नागरिक को आज ये सोचने की ज़रूरत है कि कब तक हम इनकी मूर्खताओं को नज़रंदाज़ करते रहेंगे और मानवीय मूल्यों पर आघात सहते रहेंगे?

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