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‘बेहतरीन रचना और कला का खून’ करने की बजाय समाज से ही करें बुराई का अंत

हाल ही में रिलीज़ हुई एकता कपूर की नई वेब सीरीज़ ट्रिपल एक्स सीज़न 2 और अनुष्का शर्मा की वेब सीरीज़ पाताल लोक को लेकर काफी विवाद हुआ। अलग-अलग बातों को लेकर देश के कई इलाकों में इन वेब सीरीज़ के प्रति एफआईआर दर्ज हुई। मामले को ज्यादा बढ़ता देख निर्माताओं ने अपनी सीरीज़ से विवादित कंटेंट हटा भी लिया। फिल्म इंडसट्री में इस तरह का विवाद कोई नया नहीं है। बॉलीवुड में इससे पहले भी कई फिल्मों और वेब सीरीज़ में आपत्तिजनक कंटेंट को लेकर विवाद हो चुका है। उदाहरण के तौर पर आप संजय लीला भंसाली की हिट फिल्म पद्मावत को ले सकते है। यहाँ पर एक बात गंभीर विषय का कारण बनती है, यदि इसी तरह फिल्मों में कंटेंट को लेकर शिकायतें दर्ज होती रही तो कहीं ना कहीं इससे ‘बेहतरीन कला और रचना का खून’ हो सकता है।

एक तरफ तो हम निर्माताओं और फिल्ममेकर्स से उम्मीद करते है कि वे अपने काम और कला में समाज की सच्चाई से रूबरू कराएं और कुछ हकीकत दिखाने की कोशिश करें। लेकिन जब वे ऐसा वास्तव में करते है तो लोगों पसंद नहीं आता और उसके खिलाफ मोर्चा लेकर निकल जाते है। कभी गाली-गलौच को लेकर, कभी जातिसूचक शब्दों के इस्तेमाल को लेकर, कभी बोल्ड सीन्स को लेकर, कभी विशेष जाति या समुदाय पर की गई टिप्पणी को लेकर, कभी धार्मिका भावनाओं को लेकर तो कभी इतिहास से छेड़छाड़ के कारण कुछ लोग अच्छी फिल्मों और सीरीज़ के खिलाफ थानों में एफआईआर आदि दर्ज करा देते है। इसके अलावा मंत्रालयों में खत लिखकर उनपर रोक लगाने की बात भी करते है।

लेकिन देश की आम जनता यहीं नहीं रूकती और अपनी मानवता परिचय देते हुए फिल्ममेकर्स को जान से मारने की धमकी भी देने लगते है। यदि निर्माता कोई महिला है तो उसे रेप की धमकी देने से भी लोग कतराते नहीं है। ये सब करने के बाद यदि फिल्म से वह कंटेंट हटा दिया जाता है तो लोग उसमें अपनी जीत समझते है और बड़ी शान से देश के सच्चे नागरिक होने का ठप्पा भी अपने ऊपर लगा लेते हैं। यहाँ पर आम जनता को समझना चाहिए कि कोई भी फिल्ममेकर कभी भी जान बूझकर अपनी फिल्म में विवादित कंटेंट डालने की कोशिश नहीं करता। वे भली-भांति ये बात जानते है कि यदि देश की जनता को उनका कंटेंट पसंद नहीं आता तो उनका करोड़ो रुपए का नुकसान हो सकता है।

फिल्ममेकर्स अपने कंटेंट में केवल समाज की सच्चाई बयां करने की कोशिश करते है। गाली-गलौच, धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना और जाति समुदाय के खिलाफ अपशब्दों का इस्तेमाल करना; ये सब बातें कहीं ना कहीं हमारे समाज का हिस्सा है। जो लोग जो इस तरह के कंटेंट को लेकर सोशल मीडिया पर अपना गुस्सा जाहिर करते है या फिर थानों में शिकायत दर्ज कराते है, वे शायद सभी बातों को निजी तौर पर ले जाते है। उन्हें फिल्मों में दिखाए गए कंटेंट को लेकर आपत्ति जताने की बजाय समाज से उन बुराइयों को खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए। फिल्म या सीरीज़ के किसी एक हिस्से पर पाबंदी लगाकर वह सच्चाई बदली नहीं जा सकती।

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