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इन युवाओं के बलिदानों का परिणाम है भारत की आजादी, लहू बहाकर कराया था वतन आजाद

भारत की आज़ादी का इतिहास किसी से भी छुपा हुआ नहीं है। न जाने कितने परिवारों के बलिदान के बाद भारत आजाद हुआ और भारतीय लोगों के हाथों में राष्ट्र का शासन आ गया। लेकिन आजादी के बाद की राजनीति ने उन भारतीय क्रांतिकारियों के परिवारों के साथ ना तो कोई सरोकार रखा और ना ही कोई संबंध रखा, जिन क्रांतिकारियों का दिल 24 घंटे भारत की आजादी के लिए धड़कता था।

भारत के क्रांति इतिहास में बहुत सारे लोगों को आजादी का महानायक बनाया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कुछ युवाओं के बारे में कि अगर यह लोग अपने लोगों को पानी की तरह आजादी के युद्ध में ना बहाते तो शायद आज हम लोग आज हम लोग आजाद नहीं होते।

मंगल पांडे

मंगल पांडे वह देशभक्त क्रांतिकारी जिन्होंने 1857 की क्रांति का बिगुल बजाया था। ब्रिटिश सरकार की नौकरी करते हुए भी उन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। मंगल पांडे के विद्रोह की शुरुआत एक बंदूक की वजह से हुई। बंदूक को भरने के लिए कारतूस को दांतों से काट कर खोलना पड़ता था और उसमे भरे हुए बारुद को बंदूक की नली में भर कर कारतूस को डालना पड़ता था। कारतूस का बाहरी आवरण में चर्बी होती थी, जो कि उसे पानी की सीलन से बचाती थी। सिपाहियों के बीच अफ़वाह फ़ैल चुकी थी कि कारतूस में लगी हुई चर्बी सुअर और गाय के मांस से बनायी जाती है। 21 मार्च 1857 को बैरकपुर परेड मैदान कलकत्ता के निकट मंगल पांडेय जो दुगवा रहीमपुर(फैजाबाद) के रहने वाले थे रेजीमेण्ट के अफ़सर लेफ़्टीनेंट बाग पर हमला कर उसे घायल कर दिया था। 6 अप्रैल 1557 को मंगल पांडेय का कोर्ट मार्शल कर दिया गया और 8 अप्रैल को फ़ांसी दे दी गयी।

खुदीराम बोस

खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर 1889 को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के बहुवैनी नामक गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम त्रैलोक्यनाथ बोस और माता का नाम लक्ष्मीप्रिया देवी था। अपने वतन को आजाद कराने का ऐसा जुनून खुदीराम के दिल में बसता था कि उन्होंने अपनी स्कूली पढ़ाई छोड़कर आजादी के संग्राम का हिस्सा बनना उचित समझा। इस बहादुर नौजवान को 11 अगस्त 1908 को फांसी दे दी गई थी उस समय उनकी उम्र 18 साल कुछ महीने थी। अंग्रेज सरकार उनकी निडरता और वीरता से इस कदर आतंकित थी कि उनकी कम उम्र के बावजूद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। इस फैसले के बाद क्रांतिकारी खुदीराम बोस हाथ में गीता लेकर खुशी-खुशी फांसी पर चढ़ गए।

खुदीराम की लोकप्रियता का यह आलम था कि उनको फांसी दिए जाने के बाद बंगाल के जुलाहे एक खास किस्म की धोती बुनने लगे, जिसकी किनारी पर खुदीराम लिखा होता था और बंगाल के नौजवान बड़े गर्व से वह धोती पहनकर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े थे।

भगत सिंह

जो भी व्यक्ति आजादी के बारे में जानता है उसने भगत सिंह का नाम तो सुना ही होगा। भगत सिंह से ऐसे क्रांतिकारी थे जिनका चेहरा आज भी लोगों के दिलों में बसता है। आज भी बहुत सारे बच्चे और बहुत सारे युवा भगत सिंह को अपना आइडल मानते हैं और उनके पद चिन्हों पर चलकर अच्छा महसूस करते हैं।भगत सिंह का जन्म 27 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था। यह जिला अब पाकिस्तान है। उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला था। चंद्रशेखर आजाद,रामप्रसाद बिस्मिल, राजगुरु, सुखदेव के साथ मिलकर भगत सिंह ने अपने क्रांतिकारी इरादों से एक ऐसा बवंडर खड़ा किया था जिसे देखकर अंग्रेज समझ चुके थे कि अब उनकी सत्ता ज्यादा दिनों तक भारत में रहने वाली नहीं है।

चन्द्रशेखर आजाद

दुश्मनों की गोलियों का सामना करते रहेंगे।

हम आज भी आजाद हैं, और आगे भी आजाद रहेंगे।

मध्य प्रदेश के एक छोटे से घर में जन्म लेने वाले अमर शहीद क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद एक ब्राह्मण और राष्ट्रभक्त युवक थे। चंद्रशेखर आजाद के बचपन का नाम चंद्रशेखर तिवारी था। आजादी के असहयोग आंदोलन के साथ मिलकर चंद्रशेखर ने बचपन में ही खुद को क्रांतिकारी साबित कर दिया था। जब उनका मन महात्मा गांधी की अहिंसा की नीतियों से हो गया तो उन्होंने बंदूक के दम पर राष्ट्र को आजादी दिलाने की ठान ली। आजाद ने 1925 में उन्होंने काकोरी में ट्रेन को लूटा। इसके उनकी मुलाकात भगत सिंह और सुखदेव से हुई। ब्रितानियां सरकार इन लोगों की तलाश कर रही थी। 27 फरवरी 1931 को आजाद जब सुखदेव से मिलने इलाहाबाद के अल्फ्रेड पार्क पहुंचे तो पुलिस ने उन्हें घेर लिया। दोनों तरफ से गोलीवारी शुरू हो गई। इलाहाबाद के इस पार्क में बहुत समय तक गोलाबारी हुई और जब अंत समय में चंद्रशेखर के पास केवल एक गोली बची उन्होंने को गोली से खुद को ही निशाना बना लिया। चंद्रशेखर हमेशा कहते थे कि मैं जीते जी अंग्रेजों के हाथ नहीं आऊंगा और अंत समय में उन्होंने अपना यह वादा पूरा किया।प्रयागराज के अल्फ्रेड पार्क हो वर्तमान में चंद्रशेखर आजाद पार्क के नाम से जाना जाता है।

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