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इस्लाम से डर लगता है?….या इन्सान से डर लगता है?

इस्लाम से डर लगता है?…या इन्सान से डर लगता है

क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि जब कभी भी दुनिया भर मे कहीं से भी हिंसा की खबर आती है, आतंकवाद की खबर आती है या जुर्म की खबर आती है तो अधिकतर एक ही धर्म से जुड़े लोगों का नाम सुनने मे आता है। फिर चाहे वो सीरिया को तबाह करने वाला आतंकी समूह ISIS हो, अमेरिका में 9/11 करने वाला आतंकवादी गिरोह हो या फिर भारत में 26/11 को अंजाम देने वाला आतंकी रहा हो, ये सभी एक ही धर्म से जुड़े हुए हैं। इसके बाद हम रोजाना ही अखबारो में पढ़ते रहते हैं कि फला देश मे आतंकियों ने हमला कर दिया, फला देश में आत्मघाती हमला हुआ, और बिना पूरी खबर पढ़े ही हम समझ जाते हैं की इस आतंकी का नाम कैसा होगा और ये किस धर्म का होगा। अभी हाल ही का उदाहरण ले लीजिए, हमारा भारत देश कोरोना वायरस जैसी बेहद भयावह दुश्मन को मात देने के रास्ते पर आगे बढ़ ही रहा था कि कुछ लोगों की गलती का भयावह परिणाम पूरे देश को देखने को मिल रहा है।

जी हाँ…ये उसी धर्म के लोग है जिनकी गलियों में जाने से अक्सर लोगों को डर लगता है। अक्सर लोगो द्वारा ये कहते सुना जाता है कि हर शहर में एक ऐसा इलाका होता है जहाँ जाने से डर लगता है।

लेकिन यहाँ पर हम सभी को विचार करने की जरूरत है..! आख़िर ऐसा क्यों हो रहा? क्यों एक ही धर्म के लोगों को दुनिया मे आतंकवाद के दूसरे नाम से संबोधित किया जाने लगा है? क्यों मात्र 18 साल का अजमल कसाब हाथ मे बन्दूक लेकर बर्बरतापूर्वक लोगों की लाशें बिछाने लगता है। क्यों एक सिविल इंजीनियर, ओसामा बिन लादेन 9/11 जैसी भयानक घटना को अंजाम देने में जरा भी नहीं हिचकिचाता है? आख़िर गलती कहाँ हो रही है? कहाँ से इस धर्म मे इस तरह के हिंसक विचारों वाले लोग उत्पन्न होते जा रहे हैं। क्या इस्लाम धर्म मे ही दोष है?

लेकिन अगर ऐसा है तो फिर हमें इंसानियत की मिसाल अब्दुल कलाम और उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ को नहीं भूलना चाहिए। हमें इकबाल को नहीं भूलना चाहिए और हमें भारतरत्न अबुल कलाम आजाद का भी जिक्र करना होगा। ये सब तो भी इस्लाम धर्म को ही मानने वाले थे। इनके जैसे ही न जाने कितने मुसलमान अभी भी दुनिया में मौजूद हैं। जो न सिर्फ़ इस्लाम का सिर ऊँचा कर रहे बल्कि पूरी दुनिया को इंसनियत का भी पाठ पढ़ा रहे हैं।

तो फिर इन सच्चे मुसलमानों और जिहाद के नाम पर आतंक फैलाने वाले मुसलमान में अंतर क्या है? चूक कहाँ हो रही?
अगर आप थोड़ा बारीकी से समझने की कोशिश करेंगे तो आपको एहसास होगा की अन्तर सिर्फ धर्म से ऊपर इंसान को रखने का है। अन्तर सिर्फ अंधभक्ति और समझदारी का है। वरना ये तो हम सभी सुनते ही आ रहे हैं कि इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं है। कहने को तो ये बहुत छोटी सी बात है, लेकिन जिसे समझ आ गयी वो किसी भी धर्म का हो किसी भी जाति को हो वो कभी भी इंसान का ही दुश्मन बनने की राह पर नहीं बढ़ेगा। वो किसी मौलवी, पंडित, जिहादी या आतंकवादी कि बहकावे में आकर कुछ भी हिंसक कदम नहीं उठाएगा। जिहाद के नाम पर हिंसा फैलाने वाले हर मुसलमान को ये समझने की जरूरत है कि उनका अल्लाह कभी हिंसा फैलाने  शर्त पर उनके लिए जन्नत का रास्ता नहीं खोलेगा।

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