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वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था की चुनौतियाँ

साल 1991 में आर्थिक सुधारों के श्री गणेश के समय अर्थशास्त्रियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था को ‘हाथी’ का नाम दिया थाI जिस तरह से हाथी मस्ती के साथ सुस्त चाल से चलता है लेकिन जहाँ से गुज़रता है लोगों को उठकर बैठने और उनको आकर्षित होने पर विवश कर देता हैI साल-दर-साल हाथी की सुस्ती दूर होती गई और अब भारत को भविष्य की महाशक्ति कहा जाने लगाI

वैसे तो हर एक देश का इतिहास आर्थिक और सामाजिक चुनौतियों से दो-चार होता आया हैI ऐसे समय में ही नेतृत्व की परीक्षा होती हैI अपनी सकारात्मक सोच और कर्म से देश किसी भी संकट से उबरने का हौसला रखता हैI मुद्रा बाज़ार में हालिया बदलाव संस्थागत प्रकृति का है और इसके अप्रत्याशित व्यवहार से असर पड़ा हैI वैश्विक रेटिंग एजेंसियों ने नीति नियंताओं को बार-बार चेताया भी है कि इसके प्रभाव के चलते चालू खाते और वित्तीय दशाओं पर असर पड़ सकता हैI जहां औद्योगिक संस्थाएं पहले से ही वृद्धि के लिए संघर्ष कर रहा हैI इस तरह के झटके अनिश्चितता को बढ़ाते ही हैंI

बड़ा मसला ये भी है कि हमारा निर्यात वैश्विक वृद्धि से प्रेरित है और इस मामले में हम बहुत निचले पायदान पर हैंI चालू खाते का घाटा स्थाई चिंता का विषय बना हुआ है और रूपए की गिरावट ने इस चिंता में इजाफा ही किया हैI भारत का निर्यात उस तेजी से नहीं बढ़ रहा, जिस तेजी से आयात बढ़ रहा है और इसके चलते चालू खाते में घाटा बढ़ता गया हैI अब इसे संभालने के लिए डॉलर की आवश्यकता आन पड़ी हैI

ध्यान देने वाली बात ये भी है कि भारत का विदेशी मुद्रा भण्डार काफी सीमित हैI वहीं, सोना और कच्चे तेल के आयात पर सर्वाधिक विदेशी मुद्रा खर्च की जाती हैI फिर अमेरिकी अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेतों से भी डॉलर मज़बूत हो पा रहा हैI गौरतलब ये भी है कि अमेरिका सहित विदेशी बाज़ारों में भी तेज़ी से सुधार हो रहा है इसीलिए विदेशी निवेशक भारतीय बाज़ारों से अपनी पूंजी निकालने में जुटे हैंI

रूपए के कमज़ोर होने की कुछ और भी वजहें हैं जिनमे अमेरिकी फेडरल रिजर्व (यानी अमेरिकी रिजर्व बैंक) का अपनी ब्याज दरें बढ़ा देना है जो अब मुक्त पूंजी प्रवाह को धीमा कर रहा हैI इसके चलते विदेशी पूंजी निवेशक भारत से पैसा निकाल कर वापस अमेरिका ले जा रहे हैंI इसका मतलब यह हुआ कि हमारे बाजार में डॉलर की उपलब्धता कम होती जा रही हैI इसकी वजह से भी डॉलर की मांग बढ़ रही हैI हमको तेल पर निर्भरता को कम करने के लिए गंभीरता से काम करने की ज़रूरत हैI इसके साथ ही कोयला, पूंजीगत वस्तुएं और इलेक्ट्रॉनिक्स के आयात को कम करने की ज़रूरत हैI निर्यात के मोर्चे पर भारत को शोध और विकास की आधारशिला पर फिरसे अपनी प्रतिस्पर्धी साख स्थापित करनी होगीI

अगर इतिहास के पन्ने पलटें जाएँ तो पता चलेगा कि साल 1991 या उसके पहले भी रूपए की कीमत में काफी गिरावट आई थी लेकिन तब और आज के परिद्रश्य में ज़मीन और आसमान का अंतर हैI उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था वैश्विक स्थर पर नहीं जुडी हुई थीI देखा जाए तो तब हम इतने बड़े पैमाने पर आयातित वस्तुओं का इस्तेमाल भी नहीं किया करते थेI वहीं, आज रूपए और डॉलर की कीमत से हर आम आदमी प्रभावित होता ही हैI

वर्त्तमान परिस्थितियों में सरकार और आरबीआई दोनों को एक-साथ मिलकर काम करना होगाI हमारा ध्यान आर्थिक वृद्धि के माहौल को बनाने, निवेशकों को प्रोत्साहित करने और भारत की वृद्धि प्रक्रिया में विदेशी निवेशकों की हिस्सेदारी के लिए उनके लिए अवसरों के सृजन पर होना चाहिएI कोरोना के इस काल में भी हमें संयम से काम लेना होगा और अपनी कमज़ोरियां दूर कर आगे बढ़ना होगा तभी हम भविष्य के निर्माता बन पाएंगे व देश को नई ऊचाइयों पर ले जा पाएंगेI

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