बीहड़ में “बाग़ी” रहते हैं, “डाकू” तो संसद में होते हैं। – *पान सिंह तोमर*
इरफ़ान ख़ान की एक मात्र हिन्दी फिल्म जो मैंने पूरी देखी है उस का यह संवाद (डायलॉग) भारतीय लोकतंत्र के लिए साधारण शब्दों में गहन चिंतन और मंथन को विवश कर देने के लिए पर्याप्त है।
पान सिंह तोमर फिल्म नक्सलवाद पर बनाई गई है, जिसमें नक्सलियों को मुख्य धारा में शामिल करते हुए पान सिंह का साक्षात्कार दिखाया गया है। नक्सली या अन्य छोटे अपराधी निरक्षरता, बेरोजगारी और अन्य मूलभूत सुविधाओं के अभाव में या अन्य विभिन्न कारणों से अपराध करने को विवश होते हैं। परंतु चुने हुए जनप्रतिनिधियों में से अधिकतर संसद या विधानसभा तक पहुंच जाने वाले तथाकथित नेता मुख्यधारा में होते हुए भी कितने बड़े अपराधी होते हैं, उपरोक्त डायलॉग इस ओर इंगित करते हुए प्रश्नचिन्ह खड़ा करता है।
दूसरी बात … विभिन्न अवसरों पर अपने धर्म की खामियों के विरुद्ध खुलकर बोलने का साहस दिखाते हुए *बकरे की कुर्बानी* पर उन का संदेश भी बहुत महत्वपूर्ण एवं प्रशंसनीय है। उनका मानना था कि कुर्बानी(त्याग/बलिदान) केवल अपनी सर्वाधिक/प्राणों से अधिक प्रिय वस्तु की ही दी जानी चाहिए। बाज़ार से शाम को खरीदे गए बेजुबान बकरे को काट देने से अल्लाह खुश नहीं होता।
*बहुत दमदार अभिनय तथा बहुमुखी प्रतिभा वाले इस कलाकार के असमय निधन से बॉलीवुड को एक अपूरणीय क्षति हुई है।*
*भगवान दिवंगत आत्मा को शान्ति प्रदान करे।*
🌹🌹🌹🌹🌹
*भावभीनी श्रद्धांजलि*
🙏🙏🙏
मनोहर शर्मा,
अध्यक्ष,
दिव्य ज्योति युवा मंडल धलाया (धामी), शिमला (हि०प्र०)
आभार… प्रखर भारत का…