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हम सबके आराध्य- श्री राम

मनुष्य का जीवन तभी बेमिसाल बन सकता है जब उसके सामने कोई आदर्श हो. आदर्श के बिना  इंसान भला क्या ही हासिल कर सकता है? आदर्श, कर्मण्यता एवं दृढ़-निश्चय ही मिलकर किसी भी पुरुष को ‘पुरुषोत्तम’ बना सकते हैं. इन तीन गुणों में से आदर्श की भूमिका सर्वाधिक उपयोगी है क्योंकि बिना आदर्श के दृढ़-संकल्प व कर्मण्यता की शक्ति दिशाहीन साबित हो सकती है. हम अपना आदर्श भी उसीको मानते हैं जिसमें हमें सभी अच्छाईयां दिखती हैं व वो अपने धर्म का पालन भी पूरे मनोयोग से करता हो. ऐसे में जो इन कसौटी पर खरा उतरता हो वो एक ही हैं- मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी. श्री राम ही हैं जो धर्म के सच्चे अनुयायी हुए हैं. वाल्मीकि ऋषि ने रामायण में लिखा है- ‘रामो विग्रहवान धर्मः’ अर्थात श्री राम धर्म का मूर्तिमान स्वरुप हैं. महर्षि वाल्मीकि ने ऐसा इसलिए लिखा क्योंकि श्री राम ने केवल उपदेश ही नहीं दिए बल्कि उन्होंने उन सब बातों पर अमल करते हुए जीकर भी दिखाया इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम की उपाधि दी जाती है.

भगवान श्री राम की लीलाएं अपरंपार रही हैं. बाल्यकाल से ही श्री राम ने अपने भाईयों के सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया था. वहीं, राजकुमार होने के बावजूद भी गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करते हुए उन्होंने अपने लिए कभी विशिष्ट सुविधा लेने की बात नहीं की और एकदम सामान्य छात्र के रूप में अपनी शिक्षा पूरी की. इसके साथ ही उन्होंने गुरु के हर आदेश का पालन भी किया. जब राजतिलक से पहले उन्हें वनवास जाने को कहा गया तो वे एक क्षण भी नहीं रुके और अपने पिता, राजा दशरथ के वचन को संकट में नहीं जाने दिया और अपने धर्म का निर्वाह करके दिखाया.

श्री राम के जीवन के इतने सारे प्रसंग हैं कि कोई भी मनुष्य उनसे प्रभावित एवं प्रेरित हुए बिना नहीं रह सकता है. धर्म का साथ देना और अधर्म का नाश करना, ऐसे ही तो मानव श्रेष्ठ बनता है. रावण द्वारा माता सीता का अपरहण करने के बाद श्री राम ने उससे माता सीता को वापस लौटालने को भी कहा पर रावण ने श्री राम की इस सज्जनता को उनकी कमज़ोरी समझ लिया. अंततः श्री राम से युद्ध में रावण को अपनी जान देनी पड़ी और ऐसे अधर्म की हार हुई.

श्री राम की जयंती (रामनवमी) के दिन हमें उनके चरित्र का अनुकरण करने का संकल्प लेना चाहिए. उनकी तरह का आदर्श पुरुष, राजा, भाई, पुत्र, शिष्य, योद्धा, तपस्वी और संयमी भला इस संसार में और कौन हुआ है? भगवान विष्णु के रामावतार का मूल उद्देश्य यही था कि वे दिखा सकें कि मर्यादित होकर कैसे एक इंसान अपना जीवन पूर्णता के साथ जी सकता है. आज जनता के साथ-साथ राजनेता और अधिकारी अगर  श्री राम के आदर्शों को अपनाएं तो निश्चित ही भारत में राम-राज्य पुनः लौट सकता है.

अधिकांश जन धर्म के मूल अर्थ को समझे बिना इसे कर्मकांड समझ लेते हैं. धर्म का तो प्रथम संदेश है कि हम सदैव मर्यादा का पालन करें पर हम अपने निजी स्वार्थों में लिप्त होकर इसकी खूब अवहेलना करते हैं. मर्यादा के बिना भला धर्म की बात करना ही निरर्थक है. आज की इस भागमभाग ज़िंदगी में व्यक्ति एवं समाज के समक्ष जो समस्याएं आ रही हैं, उनका कारण है कि हम ठीक से मर्यादा का पालन नहीं कर रहे. ऐसे में आसानी से समझा जा सकता है कि आखिर क्यों देश-दुनिया में इतनी अराजकता, अशांति और भ्रष्टाचार हावी हो चुका है? वहीं, श्री राम सर्वशक्तिसंपन्न होते हुए भी उन्होंने अपनी मर्यादा का सदैव पालन किया. कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी उन्होंने धर्म का साथ नहीं छोड़ा इसीलिए उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम कहा गया है.

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