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क्या सिर्फ़ कैंडल मार्च से रेप पर लगाम लगाया जा सकता है?

रेप, बालात्कार, गैंगरेप, ये कुछ ऐसे शब्द है जिसे सुनकर ही आम लोगों की रूह काँप उठती है। दुनिया मे शायद ही कोई ऐसा होगा जो कि सार्वजनिक रूप से रेप को समर्थन करने की बात करेगा। यहाँ पर ये समझना बहुत जरूरी है कि रेप जैसी घटना को अंजाम देने वाले किसी दूसरे ग्रह या समाज के लोग नहीं होते हैं। ये हमारे बीच के ही होते हैं और कई बार बेहद क़रीबी। हम लोगों के बीच में ही वो दरिंदे मौजूद है जो कि बालात्कार जैसी घिनौनी घटना को अंजाम देते हैं। भारत मे होने वाली सभी रेप घटनाओं में से 98 प्रतिशत रेप पीड़िता के ही किसी क़रीबी या रिश्तेदार द्वारा किया जाता है।

आख़िर ऐसा क्यों होता है? क्यों किसी इंसान की मानसिकता इतनी क्षीण हो जाती है कि वो किसी के साथ बालात्कार जैसी घटना को अंजाम देने के लिए तैयार हो जाता है?

ये कहना कतई ग़लत नहीं होगा कि बहुत सी रेप की घटनाएँ बदले के लिए अंजाम दी जाती है। लेकिन फिर, ये बात भी सोचनीय है कि आख़िर क्यों किसी महिला से बदला उसके शरीर से खिलवाड़ कर के लिया जाता है। भारत में विरले ही ये ख़बर सुनने को मिलती है कि दुश्मनी के चलते किसी पुरूष का शारीरिक शोषण किया गया है।

कुल मिलाकर चाहे रेप को बदले की नीयत से अंजाम दिया गया हो, या फिर शारीरिक तृष्णा को मिटाने के लिए, चाहे वो किसी महिला के साथ किया गया हो अथवा पुरुष या फिर किसी छोटे बच्चे के साथ, इसमें कहीं ना कहीं हमारी संस्कृति, हमारे विचार, जलवायु, लिंगानुपात, अशिक्षा, और हमारी मानसिकता जैसे बहुत से घटक जिम्मेदार है। ये घटक ना सिर्फ़ हमारे देश मे होने वाली रेप की घटनाओं के लिए जिम्मेदार है बल्कि सम्पूर्ण विश्व में इस तरह की घटनाओं के लिए जिम्मेदार हैं।

आज रेप सिर्फ़ भारत ही नहीं बल्कि विश्व के कई देशों के लिए गम्भीर मुद्दा बना हुआ है। अगर वैश्विक आँकड़े पर नज़र डालें तो दुनिया में बहुत से ऐस विकसित देश हैं जहाँ पर भारत से काफ़ी ज्यादा रेप की घटनाएँ देखने को मिलती हैं। रेप वहाँ भी हो रहे हैं जहाँ पर सरकार बहुत सख़्त है और वहाँ भी जो कि दुनिया के विकसित देशों की श्रेणी में आते हैं।

अगर बात की जाए दुनिया मे सबसे ज्यादा रेप के केसेस की तो सबसे ज्यादा रेप साउथ अफ़्रीका में होता है। यहाँ पर एक साल के भीतर तक़रीबन 5 लाख महिलाएँ बलात्कार का शिकार होती हैं। देश के 41 प्रतिशत बच्चे भी शारीरिक शोषण का शिकार होते हैं। वहीं दुनिया का सबसे विकसित देश अमेरिका इस मामलें में तीसरे स्थान पर आता है। अमेरिका में 43.9 प्रतिशत महिलाएँ अपने जीवन मे एक बार रेप का शिकार जरूर होती हैं। इंग्लैंड रेप के मामलें में चौथें स्थान पर आता है। यहाँ हर साल 73 हज़ार औरतें रेप का शिकार होती हैं। रोचक बात ये है कि यहाँ पर रेप का केस सिर्फ़ पुरुषों के ख़िलाफ़ ही दर्ज़ कराया जा सकता है। यहाँ पर ये आँकड़े देने का मकसद सिर्फ़ ये बताना है कि रेप का दंश सिर्फ़ छोटे और अशिक्षित देशों में ही नहीं बल्कि बड़े और विकसित देशों में भी देखने को मिलता है।

ऐसे में रेप जैसे शर्मनाक अपराध पर रोक लगाने के लिए  दुनिया के सभी देशों को एक साथ खड़ा होना पड़ेगा। समाज से इस दंश को ख़त्म करने के लिए सिर्फ़ कानून सख़्त बनाने से काम नहीं चलने वाला। कानून सख़्त कर के और बंदिशें लगाकर आप रेप पर थोड़ा बहुत तो लगाम लगा सकते है, लेकिन इसे जड़ से ख़त्म नहीं कर सकते।

रेप के विरोध में कैंडल मार्च निकालकर, सड़को पर प्रदर्शन कर के और सरकार को कटघरे में खड़ा कर के आप किसी एक रेपिस्ट को सजा दिलवा सकते हैं। लेकिन ख़राब मानसिकता और संस्कार के चलते जो हज़ारों रेपिस्ट और बनकर खड़े होंगे उनका क्या? क्या पता आज जो लोग सड़कों पर रेप को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, कल उन्ही के परिवार में से कोई रेपिस्ट निकल आये? तो क्या सभी को गोली से उड़ा देना और बीच चौराहे पर फाँसी दे देना ही रेप रोकने का एकमात्र निदान रह गया है? जी नहीं.. रेप रोकना है तो अपनी नस्ल को सुधारने पर काम करना होगा। प्रहार जड़ पर करना होगा, ताकि ये कुत्सित विचार किसी के मन में पनपने ही ना पाए।

इसे जड़ से ख़त्म करने के लिए लोगों की मानसिकता बदलने पर काम करना होगा। मानसिकता बदलने का काम कोई एक दिन का खेल नहीं है। शुरुआत से ही बच्चों को इस तरह से बड़ा किया जाए कि उनके अन्दर लैंगिक भेदभाव पनपने ही ना पाए। उनके भीतर ये भाव ही ना पैदा हो कि किसी का शरीर उनके लिए मनोरंजन का साधन हो सकता है। बच्चो को इस तरह का ज्ञान सिर्फ किताबों और डिग्री थमाकर नहीं दिया जा सकता है। इसे सिर्फ़ स्कूल में या कॉलेज में नहीं सिखाया जा सकता है। ये व्यवहारिक ज्ञान और नैतिक ज्ञान का हिस्सा है। इसका किताबी ज्ञान से कोई संबंध नहीं है। इस तरह का नैतिक ज्ञान बच्चों को देना उनके अभिभावकों का मूल कर्तव्य है। इसके साथ ही प्रत्येक देश की सरकार को भी अपने शिक्षा व्यवस्था में इस तरह की चीजें शामिल करनी चाहिए जिससे बच्चों में घटिया मानसिकता और संकीर्ण विचार पनपने ही ना पाये। तभी जाकर दुनिया में आदर्श नागरिक उभर कर सामने आ पायेंगे, और दुनिया में इस तरह की कुत्सित घटनाएँ कम हो सकेंगी।

कैंडल मार्च निकालने से बेहतर है, अपने बच्चों को नैतिकता की सीख दें। सीख सिर्फ़ किताबें पढ़ाकर और कहानियाँ सुनाकर नहीं, बल्कि खुद का उदाहरण दिखाकर दें।

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