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आलीशान बंगलो में बैठे मजदूर नीति के निर्माणकर्ता

कोरोना महामारी जैसी संकट की स्थिति में आलीशान बंगले में बैठकर मजदूरों की समस्याओं पर व्यख्यान करने वाले समस्त विपक्ष के नेताओ का प्रवासी मजदूरों के प्रति लगाव बहुत ही सराहनीय है। लेकिन विपक्ष के नेताओं का प्रवासी मजदूरों के प्रति ये सरहानीय लगाव किस हद तक उनके ऊपर मुश्किल की घड़ी में पहाड़ जैसे संकट को दूर कर सकता है । बड़ी बड़ी गाड़ियों में घूम कर सड़कों का दौरा करने वाले नेतागण क्या सड़क पर पैदल चल रहे मजदूरों के पैरों पर पड़े मोटे मोटे पीड़ादायक छालों के दर्द को बयां कर सकते है?

उनके दर्द को समझे बिना सरकार तथा सरकारी नीतियों पर कटाक्ष करने का उनके पास कोई अधिकार नही है। रोजगार की तलाश में गांव से शहर की ओर आने वाले मजबूर मज़दूर आज उसी रोजागर के छीन जाने से मज़बूरी के कारण शहर से गांव की दूरी को अपने कदमों से मापने को विवश है ।

मजदूरों की यही विवशता उन्हें काल के मुंह की ओर धकेल रही है,मजदूरों की ज़िन्दगी तथा उनकी मौत के बीच की लड़ाई दिनभर के समाचार चैनलों तथा समाचार पत्रों में पक्ष तथा विपक्ष की मसालेदार नोंक झोंक और आरोपों की बौछारों के रूप में मुख्य पृष्ठ की हैडलाइन में छपी होती है। आम जनता की मुत्यु नेताओं के लिए एक चुनावी मुद्दा और चुनाव के समय में नेताओं के लिए अंधो की लाठी की तरह काम करता है । चुनावी दिनों में मजदूरों के हित मे किये जाने वाले भाषण चुनाव जीत जाने के पश्चात मजदूरों के लिए मात्र एक सपने बनकर कर रह जाते है।

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